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ओकर अर्थ ई अछि जे ओ पहिने नीचाँ, पृथ्वी पर उतरल छलाह।10जे नीचाँ उतरलाह, सैह छथि जे आब ऊपर चढ़लाह—समस्त आकाशो सँ बहुत उपर, जाहि सँ ओ सम्पूर्ण सृष्टि केँ परिपूर्णता धरि लऽ जा सकथि।11वैह विभिन्न वरदान बँटलनि—किछु लोक केँ मसीह-दूत होयबाक वरदान देलथिन, किछु लोक केँ परमेश्वरक प्रवक्ता होयबाक, किछु लोक केँ शुभ समाचारक प्रचार करऽ वला होयबाक, आ किछु लोक केँ मण्डलीक देख-रेख करऽ वला और शिक्षक होयबाक वरदान देलथिन।12ई वरदान सभ देबऽ मे मसीहक उद्देश्य ई छलनि जे एहि सभ द्वारा परमेश्वरक लोक केँ सेवा-काज सभ करबाक लेल तैयार कयल जाय जाहि सँ हुनकर देह मजगूत होनि।13एहि तरहेँ अपना सभ केओ संग-संग बढ़ि कऽ, विश्वास मे और परमेश्वरक पुत्रक ज्ञान मे एक भऽ जायब, और पूर्ण सिद्धता, अर्थात् मसीहक पूर्णता, धरि पहुँचब।14एहि प्रकारेँ अपना सभ छोट बच्चा नहि रहि जायब जे प्रत्येक शिक्षाक झोंक सँ एम्हर-ओम्हर फेकाइत रही आ धोखा देबऽ वला धूर्त लोकक छल-प्रपंच सँ बनाओल जाल मे फँसि कऽ बहकाओल जाइ।15बल्कि प्रेमक संग सत्य बजैत अपना सभ बढ़ि कऽ सभ बात मे तिनका जकाँ बनैत जायब जे शरीरक सिर छथि, अर्थात् मसीह।16हुनके द्वारा पूरा देह एक संग जुटल रहैत अछि, देहक सभ अलग-अलग अंग प्रत्येक जोड़क सहायता सँ एक-दोसर सँ संयुक्त रहैत अछि, और एहि तरहेँ जखन प्रत्येक अंग ठीक सँ अपन काज करैत अछि तँ पूरा देह बढ़ि कऽ प्रेम मे अपना केँ मजगूत करैत अछि।17तेँ अहाँ सभ केँ हम ई कहऽ चाहैत छी आ प्रभु केँ साक्षी राखि एहि बात पर जोर दैत छी जे, आब सँ तकरा सभ जकाँ आचरण नहि करू जे सभ परमेश्वर केँ नहि चिन्हऽ वला जाति सभक लोक अछि। ओकरा सभक सोच-विचार निरर्थक छैक,18ओकरा सभक बुद्धि अन्हार सँ भरल छैक और ओ सभ ओहि जीवन सँ वंचित अछि जे परमेश्वर प्रदान करैत छथि। एकर कारण ई अछि जे ओ सभ जिद्दी बनि कऽ अज्ञान भऽ गेल अछि।19ओकरा सभक विवेक सुन्न भऽ गेल छैक, ओकरा सभ केँ कोनो लाजे नहि छैक। ओ सभ जानि-बुझि कऽ शारीरिक इच्छाक दास बनल अछि, आ सभ तरहक गन्दा काज करैत, ओहने-ओहने आओर काज करबाक लेल लालायित रहैत अछि।20मुदा अहाँ सभ जखन मसीह केँ चिन्हलहुँ तँ हुनका सँ एहि प्रकारक जीवन बितयबाक बात नहि सिखलहुँ।21अहाँ सभ अवश्य हुनका विषय मे सुनने छी और हुनका सम्बन्ध मे शिक्षा पौने छी, जे शिक्षा ओहि सत्यक अनुसार अछि जे यीशु मे प्रगट भेल।22अहाँ सभ केँ ई सिखाओल गेल जे अपन पुरान स्वभाव, जे अहाँ सभक पहिलुका चालि-चलन सँ स्पष्ट होइत छल, तकरा अहाँ सभ केँ त्यागि देबाक अछि, किएक तँ ओ स्वभाव धोखा देबऽ वला अभिलाषा सभक कारणेँ बिगड़ैत जा रहल अछि।23अहाँ सभ केँ ई सिखाओल गेल जे पूर्ण रूप सँ आत्मा और विचार मे नव लोक बनबाक अछि,24और नवका स्वभाव धारण करबाक अछि। नवका स्वभाव परमेश्वरक स्वरूप मे रचल गेल अछि आ ओहि धार्मिकता और पवित्रता मे व्यक्त होइत अछि जे सत्य पर आधारित अछि।25एहि लेल, अहाँ सभ मे सँ प्रत्येक व्यक्ति झूठ बजनाइ छोड़ू, और एक-दोसर सँ सत्य बाजू, कारण, अपना सभ एके शरीरक अंग भऽ कऽ एक-दोसराक छी।26“जँ क्रोधित भऽ जाइ, तँ अपना क्रोध केँ पापक कारण नहि बनऽ दिअ” —सूर्य डुबऽ सँ पहिनहि अपना क्रोध सँ मुक्त होउ।27शैतान केँ अवसर नहि दिऔक!28जे चोरी करैत अछि, से आब चोरी नहि करओ, बल्कि अपना हाथ सँ इमानदारीपूर्बक परिश्रम करओ, जाहि सँ ओ आवश्यकता मे पड़ल लोक सभक मदति कऽ सकय।29अहाँ सभक मुँह सँ कोनो हानि पहुँचाबऽ वला बात नहि निकलय, बल्कि एहन बात जे दोसराक उन्नतिक लेल होअय और अवसरक अनुरूप होअय, जाहि सँ ओहि सँ सुननिहारक हित होयतैक।30परमेश्वरक पवित्र आत्मा केँ दुखी नहि करिऔन, किएक तँ पवित्र आत्मा स्वयं अहाँ सभ पर परमेश्वरक लगाओल छाप छथि जे एहि बात केँ पक्का करैत अछि जे छुटकाराक दिन मे अहूँ सभक छुटकारा होयत।31अहाँ सभ हर तरहक कटुता, क्रोध, तामस, चिकरनाइ, दोसराक निन्दा कयनाइ और दुष्ट भावना केँ अपना सँ दूर करू।32एक-दोसराक प्रति दयालु बनू, एक-दोसर केँ करुणा देखाउ, और जहिना परमेश्वर मसीहक कारणेँ अहाँ सभ केँ क्षमा कऽ देलनि तहिना अहूँ सभ एक-दोसर केँ क्षमा करू।Maithili Bible 2010 © 2010 The Bible Society of India and © Wycliffe Bible Translators, Inc Jivən Səndesh 2010 इफिसी 4 00:00:00 00:00:00 0.5x 2.0x https://beblia.bible:81/BibleAudio/maithili/ephesians/004.mp3 6 4