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अहाँ सभक बीच मे ओहि दिन सँ परिवर्तन लबैत जा रहल अछि जहिया सँ अहाँ सभ एकरा सुनलहुँ आ परमेश्वरक कृपाक सत्यता केँ बुझलहुँ, तहिना ओ सौंसे संसार मे लोकक जीवन मे परिवर्तन लाबि रहल अछि आ बढ़ैत जा रहल अछि।7एहि बातक शिक्षा अहाँ सभ अपना सभक प्रिय भाय एपाफ्रास सँ पौलहुँ, जे हमरा सभक संग-संग सेवा करैत छथि आ हमरा सभक प्रतिनिधिक रूप मे मसीहक विश्वासयोग्य सेवक छथि।8ओ हमरा सभ केँ कहने छथि जे परमेश्वरक आत्मा अहाँ सभ मे कतेक प्रेम उत्पन्न कयने छथि।9एहि कारणेँ, जाहि दिन सँ हम सभ अहाँ सभक विषय मे सुनलहुँ, ताहि दिन सँ अहाँ सभक लेल परमेश्वर सँ प्रार्थना कयनाइ नहि छोड़ने छी। हुनका सँ ई विनती करैत छी जे, ओ अहाँ सभ केँ पूर्ण आत्मिक बुद्धि और बुझबाक क्षमता देथि जाहि सँ अहाँ सभ पूर्ण रूप सँ जानी जे हुनकर इच्छा की अछि।10हुनका सँ ई विनती एहि लेल करैत छी जाहि सँ अहाँ सभक आचरण प्रभुक योग्य होअय, जाहि सँ अहाँ सभ प्रभु केँ सभ बात मे प्रसन्न करी। हम प्रार्थना करैत छिऐन जे अहाँ सभ हर प्रकारक भलाइक काज करैत रही आ परमेश्वरक ज्ञान मे बढ़ैत रही।11परमेश्वर अपन अद्भुत सामर्थ्यक महान् शक्ति सँ अहाँ सभ केँ मजगूत बनबथि, जाहि सँ सभ बात केँ अहाँ सभ धैर्य आ सहनशीलताक संग सहि सकी,12आ आनन्दपूर्बक ओहि पिता केँ धन्यवाद दैत रही जे अहाँ सभ केँ इजोतक राज्य मे रहऽ वला हुनकर लोकक उत्तराधिकार मे सहभागी होयबा जोगरक बनौने छथि।13कारण, ओ अपना सभ केँ अन्हारक राज्य सँ मुक्त करा कऽ अपन प्रिय पुत्रक राज्य मे प्रवेश करौने छथि।14हुनका पुत्र द्वारा अपना सभ केँ छुटकारा भेटल अछि, पापक क्षमा प्राप्त भेल अछि।15यीशु मसीह अदृश्य परमेश्वरक प्रतिरूप छथि, ओ समस्त सृष्टिक उपर सर्वोच्च स्थान पर छथि।16किएक तँ हुनके माध्यम सँ सभ वस्तुक सृष्टि भेल, ओ चाहे स्वर्गक होअय वा पृथ्वीक, दृश्य होअय वा अदृश्य, सिंहासन होअय वा प्रभुता, शासन होअय वा अधिकार—सभ वस्तु हुनके द्वारा आ हुनके लेल रचल गेल अछि।17ओ सभ वस्तुक सृष्टि सँ पहिने सँ छथि आ समस्त सृष्टि हुनके मे स्थिर रहैत अछि।18ओ शरीरक, अर्थात् मण्डलीक, सिर छथि। वैह शुरुआत छथि, और पहिल छथि जे मरल सभ मे सँ जीबि उठलाह, जाहि सँ सभ बात मे हुनके प्रथम स्थान भेटनि।19किएक तँ परमेश्वरक इच्छा यैह भेलनि जे हुनकर समस्त परिपूर्णता मसीह मे निवास करनि,20आ क्रूस पर मसीह जे खून बहौलनि, तकरा मेल-मिलापक आधार बना कऽ हुनके द्वारा सभ वस्तुक, चाहे ओ पृथ्वी परक होअय वा स्वर्ग मेहक, अपना सँ मेल करा लेथि।21पहिने अहूँ सभ परमेश्वर सँ दूर छलहुँ। अहाँ सभ अपन अधलाह विचार-व्यवहारक कारणेँ अपना मोन मे परमेश्वर सँ शत्रुता कयने छलहुँ।22मुदा आब परमेश्वर मसीहक हाड़-माँसुक शरीरक मृत्यु द्वारा अपना संग अहाँ सभक मेल करौने छथि, जाहि सँ ओ अहाँ सभ केँ पवित्र, निर्दोष आ निष्कलंक बना कऽ अपना सम्मुख उपस्थित करबथि।23परन्तु ई तखने सम्भव अछि जखन अहाँ सभ अपना विश्वास मे दृढ़ भऽ कऽ स्थिर बनल रही आ ओहि आशा सँ विचलित नहि होइ जे अहाँ सभ केँ सुसमाचार द्वारा देल गेल अछि। ई वैह सुसमाचार अछि जे अहाँ सभ सुनलहुँ आ जे आकाशक नीचाँ समस्त सृष्टि मे सुनाओल गेल, और हम पौलुस परमेश्वरक सेवा मे ओकर प्रचार करबाक लेल पठाओल गेल छी।24आब हम अहाँ सभक लेल जे कष्ट भोगि रहल छी ताहि कारणेँ आनन्दित छी। एखनो मसीह केँ अपना शरीरक लेल, अर्थात् मण्डलीक लेल, दुःख भोगनाइ बाँकी छनि, और हम अपना देह मे दुःख भोगि कऽ तकरा पूरा करऽ मे सहभागी होइत छी।25परमेश्वर अहाँ सभक लाभक लेल एकटा काज हमरा जिम्मा मे दऽ कऽ मण्डलीक सेवक नियुक्त कयलनि, आ से ई अछि जे हम परमेश्वरक वचनक पूरा-पूरी प्रचार करी,26अर्थात् ओहि रहस्यक प्रचार, जे युग-युग सँ आ पीढ़ी-दर-पीढ़ी गुप्त छल, मुदा आब परमेश्वरक लोक सभक लेल प्रगट कयल गेल अछि।27परमेश्वर अपना लोकक लेल ई रहस्य प्रगट करबाक निश्चय कयलनि जाहि सँ ओ सभ जानथि जे हुनकर योजना, जे सभ जातिक लोकक लेल अछि, से कतेक अद्भुत आ वैभवपूर्ण अछि। ओ रहस्य ई अछि जे, मसीह अपने अहाँ सभ मे वास करैत छथि आ वैह एहि बातक आशाक आधार छथि जे अहाँ सभ परमेश्वरक महिमा मे सहभागी होयब।28हम सभ एही मसीहक प्रचार करैत छी। पूर्ण बुद्धि-ज्ञान प्रयोग कऽ कऽ प्रत्येक मनुष्य केँ चेतावनी दैत छी, प्रत्येक मनुष्य केँ शिक्षा दैत छी, जाहि सँ प्रत्येक मनुष्य केँ मसीह मे परिपूर्णता धरि पहुँचा कऽ हुनका सम्मुख प्रस्तुत कऽ सकी।29एहि उद्देश्यक पूर्तिक लेल हम हुनका सामर्थ्य सँ, जे हमरा मे प्रबल रूप सँ क्रियाशील अछि, कठिन परिश्रम करैत संघर्ष मे लागल रहैत छी।Maithili Bible 2010 ©2010 The Bible Society of India and WBT Maithili Bible 2010 कुलुस्सी 1 00:00:00 00:00:00 0.5x 2.0x https://beblia.bible:81/BibleAudio/maithili/colossians/001.mp3 4 1