[17] एहि वर्तमान संसारक चीज-वस्तुक दृष्टिकोण सँ जे सभ धनिक अछि, तकरा सभ केँ आज्ञा दिऔक जे ओ सभ अहंकारी नहि बनय। ओ सभ धन-सम्पत्ति पर नहि, जे जल्दी सँ समाप्त होइत अछि, बल्कि परमेश्वर पर भरोसा राखय, जे अपना सभ केँ आनन्दित रहबाक लेल सभ वस्तु पर्याप्त मात्रा मे दैत छथि। [18] ओ सभ नीक काज करैत रहय, भलाइक काज सभ करऽ मे धनिक बनय, कंजूस नहि रहय, और दोसराक सहायता करबाक लेल सदिखन तत्पर रहय। [19] एहि तरहेँ ओ सभ अपना लेल एहन पूजी लगाओत जे भविष्यक एक उत्तम आधार रहतैक, जकरा द्वारा ओ सभ ओ जीवन प्राप्त करत जे वास्तविक जीवन अछि।
[1] यीशु यरीहो नगर दऽ कऽ जा रहल छलाह। [2] यरीहो मे एक जक्कइ नामक आदमी छलाह जे कर असूल करऽ वला सभक हाकिम छलाह, और ओ धनिक छलाह। [3] ओ देखऽ चाहैत छलाह जे यीशु के छथि, मुदा ओ भीड़क कारणेँ नहि देखि पबैत छलाह किएक तँ ओ छोट खुट्टीक लोक छलाह। [4] तेँ ओ ई जानि जे यीशु एहि बाटे जा रहल छथि, आगाँ दौड़ि कऽ एक गुल्लड़िक गाछ पर चढ़ि गेलाह। [5] जखन यीशु ओहि स्थान पर पहुँचलाह तँ ऊपर ताकि कऽ कहलथिन, “यौ जक्कइ, जल्दी सँ उतरि आउ। आइ हमरा अहींक ओहिठाम रहबाक अछि।” [6] तँ जक्कइ जल्दी सँ उतरलाह और यीशु केँ बहुत खुशीपूर्बक अपना ओहिठाम लऽ जा कऽ स्वागत कयलथिन। [7] सभ लोक ई देखि कुड़बुड़ाय लागल जे, “ओ पापीक ओहिठाम पाहुन किएक बनऽ गेलाह!” [8] मुदा जक्कइ ठाढ़ भऽ कऽ प्रभु केँ कहलथिन, “प्रभु, हम अपन आधा सम्पत्ति गरीब सभ केँ दऽ दैत छी, और जँ हम ककरो सँ बइमानी कऽ कऽ किछु लेने छिऐक तँ ओकर चारि गुना फिरता कऽ देबैक।” [9] यीशु कहलथिन, “आइ एहि घर मे उद्धार आयल अछि, किएक तँ इहो मनुष्य अब्राहमक सन्तान अछि। [10] मनुष्य-पुत्र तँ हेरायल सभ केँ तकबाक लेल और ओकरा सभक उद्धार करबाक लेल आयल अछि।”
मुदा एहि संसारक चिन्ता, धनक मोह-माया आ आरो चीजक लालसा हृदय मे आबि कऽ वचन केँ दबा दैत छैक और ओ वचन ओकरा जीवन मे कोनो फल नहि दैत अछि।
[18] एकटा ऊँच अधिकारी यीशु सँ पुछलथिन, “यौ उत्तम गुरुजी! अनन्त जीवन प्राप्त करबाक लेल हम की करू?” [19] यीशु कहलथिन, “अहाँ हमरा ‘उत्तम’ किएक कहैत छी? परमेश्वर केँ छोड़ि आरो केओ उत्तम नहि अछि। [20] अहाँ धर्म-नियमक आज्ञा सभ तँ जनैत छी—‘परस्त्रीगमन नहि करह, हत्या नहि करह, चोरी नहि करह, झूठ गवाही नहि दैह, अपन माय-बाबूक आदर करह।’ ” [21] ओ उत्तर देलथिन, “एहि सभ आज्ञाक पालन हम बचपने सँ करैत छी।” [22] यीशु ई सुनि हुनका कहलथिन, “एक बातक कमी अहाँ मे एखनो अछि। अहाँ अपन सभ किछु बेचि कऽ ओकरा गरीब सभ मे बाँटि दिअ, अहाँ केँ स्वर्ग मे धन भेटत। तकरबाद आउ आ हमरा पाछाँ चलू।” [23] ई बात सुनि ओ बहुत उदास भेलाह, किएक तँ हुनका बहुत धन-सम्पत्ति छलनि। [24] यीशु हुनका दिस तकैत बजलाह, “धनिक सभक लेल परमेश्वरक राज्य मे प्रवेश कयनाइ कतेक कठिन अछि! [25] धनिक केँ परमेश्वरक राज्य मे प्रवेश कयनाइ सँ ऊँट केँ सुइक भूर दऽ कऽ निकलनाइ आसान अछि।” [26] एहि पर सुनऽ वला लोक सभ पुछलकनि, “तखन उद्धार ककर भऽ सकैत छैक?!” [27] यीशु उत्तर देलथिन, “जे बात मनुष्यक लेल असम्भव अछि, से परमेश्वरक लेल सम्भव अछि।” [28] पत्रुस हुनका कहलथिन, “देखू, हम सभ अपन सभ किछु त्यागि कऽ अहाँक पाछाँ आयल छी।” [29] यीशु हुनका सभ केँ कहलथिन, “हम अहाँ सभ केँ सत्ये कहैत छी जे, प्रत्येक व्यक्ति जे घर, घरवाली, भाय, माय-बाबू वा धिआ-पुता केँ परमेश्वरक राज्यक लेल त्याग करैत अछि, [30] तकरा एहि युग मे ओकर कतेको गुना भेटतैक, और आबऽ वला युग मे अनन्त जीवन।”
[1] यीशु यरीहो नगर दऽ कऽ जा रहल छलाह। [2] यरीहो मे एक जक्कइ नामक आदमी छलाह जे कर असूल करऽ वला सभक हाकिम छलाह, और ओ धनिक छलाह। [3] ओ देखऽ चाहैत छलाह जे यीशु के छथि, मुदा ओ भीड़क कारणेँ नहि देखि पबैत छलाह किएक तँ ओ छोट खुट्टीक लोक छलाह। [4] तेँ ओ ई जानि जे यीशु एहि बाटे जा रहल छथि, आगाँ दौड़ि कऽ एक गुल्लड़िक गाछ पर चढ़ि गेलाह। [5] जखन यीशु ओहि स्थान पर पहुँचलाह तँ ऊपर ताकि कऽ कहलथिन, “यौ जक्कइ, जल्दी सँ उतरि आउ। आइ हमरा अहींक ओहिठाम रहबाक अछि।” [6] तँ जक्कइ जल्दी सँ उतरलाह और यीशु केँ बहुत खुशीपूर्बक अपना ओहिठाम लऽ जा कऽ स्वागत कयलथिन। [7] सभ लोक ई देखि कुड़बुड़ाय लागल जे, “ओ पापीक ओहिठाम पाहुन किएक बनऽ गेलाह!” [8] मुदा जक्कइ ठाढ़ भऽ कऽ प्रभु केँ कहलथिन, “प्रभु, हम अपन आधा सम्पत्ति गरीब सभ केँ दऽ दैत छी, और जँ हम ककरो सँ बइमानी कऽ कऽ किछु लेने छिऐक तँ ओकर चारि गुना फिरता कऽ देबैक।” [9] यीशु कहलथिन, “आइ एहि घर मे उद्धार आयल अछि, किएक तँ इहो मनुष्य अब्राहमक सन्तान अछि। [10] मनुष्य-पुत्र तँ हेरायल सभ केँ तकबाक लेल और ओकरा सभक उद्धार करबाक लेल आयल अछि।” [11] लोक सभ ई बात सुनि रहल छल। तखन यीशु ओकरा सभ केँ एक दृष्टान्त सुनौलथिन, किएक तँ ओ यरूशलेमक लग मे पहुँचि गेल छलाह, और लोक ई बुझैत छल जे परमेश्वरक राज्य तुरत्ते प्रगट होमऽ वला अछि। [12] ओ कहलथिन, “एक ऊँच घरानाक लोक दूर परदेश गेलाह जतऽ सँ हुनका अपन राज-अधिकार प्राप्त कऽ कऽ घूमि अयबाक छलनि। [13] जाय सँ पहिने ओ अपन दसटा नोकर केँ बजबा कऽ ओकरा सभ केँ एक-एकटा सोनक रुपैया देलथिन आ कहलथिन, ‘जाबत तक हम नहि आयब, ताबत तक एहि पाइ सँ व्यापार करह।’ [14] “मुदा प्रजा हुनका सँ घृणा करैत छलनि, और हुनका पाछाँ अपन आदमी सभ केँ ई सम्बाद लऽ कऽ पठौलक जे, ‘हम सभ नहि चाहैत छी जे ई हमरा सभ पर राज्य करय।’ [15] “मुदा ओ राजा बनलाह, और अपन देश मे घूमि अयलाह। तखन ई बुझबाक लेल जे, हमर नोकर सभ जकरा सभ केँ हम पाइ देने छलिऐक, से सभ हमर पाइ सँ कतेक कमायल, ओकरा सभ केँ बजबौलथिन। [16] “पहिल नोकर आबि कऽ कहलकनि, ‘मालिक, अपनेक देल एक सोनक रुपैया दस गुना भऽ गेल।’ [17] “मालिक उत्तर देलथिन, ‘चाबस! तोँ नीक नोकर छह! तोँ नान्हिटा बात मे विश्वासपात्र भेलह, तोरा दसटा नगर पर अधिकार होयतह।’ [18] “तखन दोसर नोकर आबि कऽ कहलकनि, ‘मालिक, अपनेक देल एक सोनक रुपैया पाँच गुना भऽ गेल।’ [19] “मालिक उत्तर देलथिन, ‘तोँ पाँच नगर पर अधिकारी बनबह।’ [20] “एकटा तेसर नोकर आयल और कहऽ लागल, ‘मालिक, लेल जाओ अपन सोनक रुपैया। हम एकरा कपड़ा मे बान्हि कऽ रखने छलहुँ। [21] हम अपने सँ डेराइत छलहुँ, कारण, अपने कठोर आदमी छी। जे अहाँ रखलहुँ नहि, से निकालैत छी, आ जे रोपलहुँ नहि, से कटैत छी।’ [22] “मालिक उत्तर देलथिन, ‘है दुष्ट नोकर! हम तोरे शब्द सँ तोरा दोषी ठहरयबौ! तोँ जँ जनैत छलेँ जे हम कठोर आदमी छी, जे रखलहुँ नहि, से निकालैत छी, आ जे रोपलहुँ नहि, से कटैत छी, [23] तँ तोँ हमर पाइ केँ व्याज पर किएक नहि लगा देलेँ जाहि सँ हम आबि कऽ ओकरा व्याजक संग लऽ लितहुँ?’ [24] “तखन मालिक अपना लग मे ठाढ़ भेल लोक केँ कहलथिन, ‘एकरा सँ ओ सोनक रुपैया लऽ लैह, और तकरा दऽ दहक जकरा दसटा छैक।’ [25] “ओ सभ कहलकनि, ‘मालिक, ओकरा तँ दसटा छैके!’ [26] “मालिक उत्तर देलथिन, ‘हम तोरा सभ केँ कहैत छिअह, जकरा लग छैक, तकरा आरो देल जयतैक, मुदा जकरा लग नहि छैक, तकरा सँ जेहो छैक सेहो लऽ लेल जयतैक। [27] मुदा हमर ओ दुश्मन सभ, जे नहि चाहैत छल जे हम ओकरा सभ पर राज्य करी, तकरा सभ केँ आनू, और हमरा सामने मे मारि दिऔक।’ ”
[22] यीशु ई सुनि हुनका कहलथिन, “एक बातक कमी अहाँ मे एखनो अछि। अहाँ अपन सभ किछु बेचि कऽ ओकरा गरीब सभ मे बाँटि दिअ, अहाँ केँ स्वर्ग मे धन भेटत। तकरबाद आउ आ हमरा पाछाँ चलू।” [23] ई बात सुनि ओ बहुत उदास भेलाह, किएक तँ हुनका बहुत धन-सम्पत्ति छलनि।
[41] तखन यीशु मन्दिर मे दान-पात्र लग बैसि कऽ लोक सभ केँ ओहि मे दान दैत देखलनि। बहुत लोक जे सभ धनिक छल से सभ ओहि मे बहुत किछु रखैत छल। [42] तखन एकटा गरीब विधवा आबि कऽ तामक दूटा पाइ, जकर मूल्य एको पैसा सँ कम छलैक, से दान-पात्र मे देलक। [43] यीशु शिष्य सभ केँ अपना लग बजा कऽ कहलथिन, “हम अहाँ सभ केँ सत्य कहैत छी जे, ई गरीब विधवा ओहि सभ लोक सँ बेसी दान चढ़ौलक, [44] किएक तँ ओ सभ धनिक भऽ कऽ अपन फाजिल धन मे सँ दान चढ़ौलक मुदा ई गरीब भऽ कऽ अपना लेल किछु नहि राखि अपन पूरा जीविके चढ़ा देलक।”
[14] “स्वर्गक राज्य परदेश जाय लागल एक गोटेक यात्रा वला बात जकाँ अछि। परदेश जाय सँ पहिने ओ अपन सेवक सभ केँ बजौलनि आ अपन सम्पत्तिक देख-रेख करबाक भार ओकरा सभक जिम्मा देलथिन। [15] ओ अपन सेवक सभक गुणक अनुसार एकटा केँ पाँच हजार, दोसर केँ दू हजार आ तेसर केँ एक हजार सोनक रुपैया जिम्मा दऽ परदेश चल गेलाह। [16] जकरा पाँच हजार भेटल छलैक, से ओकरा तुरत व्यापार मे लगौलक आ ओहि सँ पाँच हजार आओर कमायल। [17] एहि तरहेँ जकरा दू हजार भेटल छलैक से दू हजार आओर कमायल। [18] मुदा जकरा एक हजार भेटल छलैक से खधिया खुनि कऽ अपन मालिकक रुपैया ओहि मे नुका कऽ धयलक। [19] “बहुत समय बितला पर मालिक परदेश सँ घूमि अयलाह आ अपन सेवक सभ सँ हिसाब-किताब लेबऽ लगलाह। [20] जकरा पाँच हजार भेटल छलैक से दस हजार रुपैया आनि कऽ अपना मालिक केँ कहलकनि, ‘मालिक, अपने हमरा पाँच हजार देने छलहुँ, देखल जाओ, हम एहि सँ पाँच हजार आरो कमयलहुँ।’ [21] मालिक ओहि सेवक केँ कहलथिन, ‘चाबस! तोँ नीक आ भरोसमन्द सेवक छह! थोड़बो वस्तु मे तोँ विश्वसनीय रहलह। हम आब तोरा बहुत वस्तु पर अधिकार देबह। अपन मालिकक आनन्द मे सहभागी बनह!’ [22] “जकरा दू हजार भेटल छलैक सेहो आबि कऽ कहलकनि, ‘मालिक, अपने हमरा दू हजार देने छलहुँ, देखल जाओ, हम एहि सँ दू हजार आरो कमयलहुँ।’ [23] मालिक ओहू सेवक केँ कहलथिन, ‘चाबस! तोँ नीक आ भरोसमन्द सेवक छह! थोड़बो वस्तु मे तोँ विश्वसनीय रहलह। हम आब तोरा बहुत वस्तु पर अधिकार देबह। अपन मालिकक आनन्द मे सहभागी होअह!’ [24] “तकरबाद जकरा एक हजार भेटल छलैक से आयल आ कहलक, ‘मालिक, हम अपने केँ जनैत छी जे अपने कठोर आदमी छी। जाहि खेत मे रोपने नहि छी, ताहि मे कटनी करबैत छी। जतऽ अपनेक वस्तु छिटायल नहि रहैत अछि, ततऽ समटबैत छी। [25] तेँ हमरा डर भेल आ अपनेक देल एक हजार रुपैया हम जमीन मे गाड़ि कऽ रखने छलहुँ। लेल जाओ अपन ओ रुपैया।’ [26] मालिक ओहि सेवक केँ कहलथिन, ‘है दुष्ट आ आलसी सेवक! जखन तोँ जनैत छलेँ जे हम जाहि मे रोपने नहि छी ताहि मे कटनी करैत छी आ जतऽ हमर छिटायल नहि अछि ततऽ हम समटैत छी, [27] तँ तोँ हमर पाइ कोनो महाजनक जिम्मा लगा दिते, जाहि सँ हम आबि कऽ अपन पाइ कम सँ कम व्याजक संग पबितहुँ। [28] हौ, एकरा सँ इहो पाइ लऽ लैह आ जकरा लग दस हजार छैक तकरा दऽ दहक। [29] किएक तँ जकरा लग छैक तकरा आरो देल जयतैक, जाहि सँ ओकरा बहुते भऽ जायत। मुदा जकरा लग नहि छैक, तकरा सँ जेहो छैक सेहो लऽ लेल जयतैक। [30] और एहि निकम्मा सेवक केँ बाहर अन्हार मे फेकि दैह जतऽ लोक कनैत आ दाँत कटकटबैत रहैत अछि।’
काँट-कुशक बीच खसल बीया ओ मनुष्य भेल जे शुभ समाचार केँ सुनैत अछि मुदा सांसारिक चिन्ता आ धन-सम्पत्तिक मोह-माया ओहि शुभ समाचार केँ दबा दैत छैक और ओ वचन ओकरा जीवन मे कोनो फल नहि दैत अछि।
“तेँ काल्हि की होयत तकर चिन्ता नहि करू, किएक तँ काल्हि अपन चिन्ता अपने कऽ लेत। आजुक लेल तँ अजुके दुःख बहुत अछि।
“एहि लेल हम अहाँ सभ केँ कहैत छी, अपना प्राणक लेल चिन्ता नहि करू जे हम की खायब वा की पीब, आ ने शरीरक लेल चिन्ता करू जे की पहिरब। की भोजन सँ प्राण, आ वस्त्र सँ शरीर बेसी मूल्यवान नहि अछि?
सप्ताहक पहिल दिन मे प्रत्येक व्यक्ति अपन कमाइक अनुसार किछु अलग कऽ कऽ जमा करैत जाय। एहि तरहेँ हमरा पहुँचला पर चन्दा जमा करबाक आवश्यकता नहि रहत।