हम अपना शरीर केँ कष्ट दऽ कऽ वश मे रखैत छी। नहि तँ कतौ एना नहि भऽ जाय जे दोसर लोक केँ उपदेश देलाक बाद हम स्वयं पुरस्कार पयबाक लेल अयोग्य ठहरी।
अहाँ सभ कहियो कोनो एहन परीक्षा मे नहि पड़लहुँ जे मनुष्य सभ केँ नहि होइत रहैत अछि। परमेश्वर विश्वासयोग्य छथि। ओ अहाँ सभ केँ एहन परीक्षा मे नहि पड़ऽ देताह जे अहाँ सभक सहनशक्ति सँ बाहर होअय। ओ परीक्षाक समय मे तकरा सहबाक साहस दैत अहाँ सभ केँ पार कऽ निकलबाक उपाय सेहो उपलब्ध करौताह।
कारण, जे किछु संसार मे छैक, अर्थात् मनुष्यक पापी स्वभावक इच्छा, ओकर आँखिक लालसा और धन-सम्पत्ति पर ओकर घमण्ड, से पिताक दिस सँ नहि, बल्कि संसारक दिस सँ अबैत अछि।
अविश्वासी सभक बीच अपन चालि-चलन केँ एतेक नीक बना कऽ राखू जे, जे सभ एखन अहाँ सभ केँ अधलाह काज करऽ वला कहि कऽ निन्दा करैत अछि, से सभ अहाँ सभक नीक काज सभ देखि कऽ न्यायक दिन मे परमेश्वरक स्तुति करनि।
अनैतिक सम्बन्ध सँ दूर रहू। आरो सभ पाप जे मनुष्य करैत अछि, से शरीर सँ हटल अछि, मुदा जे ककरो संग अनैतिक सम्बन्ध रखैत अछि से अपना शरीरेक विरुद्ध पाप करैत अछि।
जवानीक अधलाह लालसा सभ सँ दूर भागू और ओहन लोक जे सभ निष्कपट हृदय सँ प्रभु सँ प्रार्थना करैत छथि, तिनका सभक संग अहूँ धार्मिकता, विश्वास, प्रेम आ शान्तिक जीवन बितौनाइ अपन लक्ष्य बनाउ।
तेँ हम अहाँ सभ केँ कहैत छी जे अहाँ सभ परमेश्वरक आत्माक प्रेरणाक अनुसार चलू, तखन अहाँ सभ पापी स्वभावक इच्छा सभक पूर्ति करऽ वला नहि होयब।
मानवीय पाप-स्वभावक इच्छा सभ पर मोन लगौनाइक परिणाम अछि मृत्यु, मुदा पवित्र आत्माक इच्छा पर मोन लगौनाइक परिणाम अछि जीवन आ शान्ति,
प्रभु यीशु मसीह केँ धारण करू, आ अपन पापी स्वभावक इच्छा सभ केँ तृप्त करबाक विचार छोड़ि दिअ।
[13] प्रलोभन मे पड़ल कोनो व्यक्ति ई नहि कहय जे, “परमेश्वर हमरा प्रलोभन मे राखि देने छथि,” कारण, परमेश्वर अधलाह बात सभ सँ ने तँ स्वयं प्रलोभन मे पड़ि सकैत छथि आ ने अनका ककरो प्रलोभन मे रखैत छथि, [14] बल्कि जे प्रलोभन मे पड़ैत अछि से अपने खराब अभिलाषा सँ खिचल आ फँसाओल जाइत अछि।
[19] आब देखू, पापी स्वभावक काज सभ स्पष्ट अछि, जेना गलत शारीरिक सम्बन्ध, अशुद्ध विचार-व्यवहार, निर्लज्जता, [20] मुरुतक पूजा, जादू-टोना, दुश्मनी, लड़ाइ-झगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध, स्वार्थ, मनमोटाब, दलबन्दी, [21] द्वेष, मतवालापन आ भोग-विलास आ एहि प्रकारक आन बात सभ। हम अहाँ सभ केँ एहि विषय सभ मे चेतावनी दैत छी, जेना कि पहिनो दऽ चुकल छी जे, एहन काज करऽ वला लोक सभ परमेश्वरक राज्यक उत्तराधिकारी नहि होयत।
[3] पति अपना स्त्रीक प्रति अपन वैवाहिक कर्तव्य पूरा करय, आ तहिना स्त्री सेहो अपना पतिक प्रति। [4] स्त्री केँ अपना शरीर पर अधिकार नहि छैक; ओहि पर ओकर पतिक अधिकार छैक। आ तहिना पति केँ ओकर अपना शरीर पर अधिकार नहि छैक; ओहि पर ओकर स्त्रीक अधिकार छैक। [5] अहाँ सभ एक-दोसर केँ एहि अधिकार सँ वंचित नहि करू। जँ अपना केँ प्रार्थना मे समर्पित करबाक लेल से करबो करी तँ दूनूक सहमत सँ आ किछुए समयक लेल। तखन फेर पहिने जकाँ एक संग रहू जाहि सँ एना नहि होअय जे अहाँ सभ केँ अपना पर काबू नहि राखि सकबाक कारणेँ अहाँ सभ केँ शैतान प्रलोभन मे फँसाबय।
[3] परमेश्वरक इच्छा ई छनि जे अहाँ सभ पवित्र बनी। ओ चाहैत छथि जे अहाँ सभ दोसराक संग सभ तरहक अनैतिक शारीरिक सम्बन्ध सँ दूर रही, [4] अहाँ सभ मे सँ प्रत्येक व्यक्ति अपना शरीर केँ पवित्रता और मर्यादाक संग नियन्त्रण मे राखी, [5] आ नहि कि प्रभुक शिक्षा सँ अपरिचित जातिक लोक सभ, जे सभ परमेश्वर केँ नहि चिन्हैत अछि, तकरा सभ जकाँ अपना शरीर केँ वासनाक पूर्ति करबाक साधन बुझी।
[27] “अहाँ सभ सुनने छी जे कहल गेल, ‘परस्त्रीगमन नहि करह।’ [28] मुदा हम अहाँ सभ केँ कहैत छी जे, जे कोनो पुरुष कोनो स्त्री केँ अधलाह इच्छा सँ देखैत अछि, से तखने अपना मोन मे ओकरा संग परस्त्रीगमन कऽ लेलक। [29] जँ अहाँक दहिना आँखि अहाँ केँ पाप मे फँसबैत अछि तँ ओकरा निकालि कऽ फेकि दिअ। अहाँक शरीरक एके अंग नष्ट भऽ जाओ, से अहाँक लेल एहि सँ नीक होयत जे सम्पूर्ण शरीर नरक मे फेकि देल जाय। [30] जँ अहाँक दहिना हाथ अहाँ केँ पाप मे फँसबैत अछि तँ ओकरा काटि कऽ फेकि दिअ। अहाँक शरीरक एके अंग नष्ट भऽ जाओ, से अहाँक लेल एहि सँ नीक होयत जे सम्पूर्ण शरीर नरक मे फेकि देल जाय।